यात्रा संस्मरण - ;
ये बात उस समय की है जब मैं विश्व - विद्यालय में पड़ता था
गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे वो मेरा पहला दोस्तों के साथ पर्यटन था
मैं बहुत उत्साहित था इसी उत्सुकता में मैं पर्यटन से पहली रात सो ना सका
जब जाने का दिन आया उससे पहले दिन ही कार्यक्रम रद्द हो गया की किसके
साथ जाऊ फिर अचानक मेरे दोस्त पुनीत ओर रजत का जाने का कर्यक्रम बन गया अंत
में दूसरे दोस्त योगिंदर का जाने का प्रोग्राम अंतिम समय बना
में दूसरे दोस्त योगिंदर का जाने का प्रोग्राम अंतिम समय बना
और मेरा जाना तय हो गया मैं बहुत खुश हो गया फिर सारी तयारी की
सामान पैक किया मेला देखने के लिए हम चल पड़े मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा
उत्साह में मैं बहुत ही जल्दी विश्व - विद्यालय पहुंच गया
बहुत देर बाद बस चली हमने गाने सुनने का भी प्रोग्राम कर रखा था
हम गाते खेलते हुए जा रहे थे
घंटे भर बाद हम दिल्ही मेले वाली जगह पहुँच गए
मेले में देखने के लिए इतना कुछ था की कुछ भी पूरा देखने के लिए समय कम था अलग - अलग राज्यों की सांस्कृतिक झांकिया थी कही कही राजस्थानी हस्तकरघा की वस्तुए थी कही कला -और संस्कृति की वस्तुओं के स्टाल थे बहुत अद्धभुत कला थी कही हरियाणा से सम्बंधित कला और संस्कृति के स्टॉल थे , कही पंजाब से सम्बंधित कला से सम्बन्धित स्टॉल थे कही पंजाब का भांगड़ा और गिद्दा था
गिद्दा और भांगड़ा बहुत अदभुत थे
कही हरियाणा की रागनी हो रही थी
कही गुजरात का डांडिया हो रहा था जो बहुत ही आकर्षक था कत्थक भी हो रहा था
कही दिल्ही की झांकिया थी दिल्ही के स्टॉल भी बहुत बढ़िया थे
जुट के समान का भी स्टाल था
दिल्ही के बाद हमारा अगला पर्यटन स्थल जालियां वाला बाग़ और बाघा बॉर्डर
उसी के पास एक गुरुद्वारे भी जाना था जलियाँवाला बाग़ देखा वो गोलियों के निशान देखे जो
कुँए के पास जनरल डायर ने अहिंसक प्रदर्शन कर रहे निर्दोष भारतीयों पर दागे
उसके बाद हमारा अगला पड़ाव गुरुद्वारे में था मैं जब गुरुद्वारे में गया अचानक
मैं जिस समूह में था वो गायब हो गया मैं ढूंढता रहा पर कोई नहीं मिला पुनीत और भरत जिनका जाने का बनने के कारण बना था वो ही साथ छोड़ गए और तभी कोई अलग समूह में जो जा रहा था वो मिला
मगर पुनीत और रजत नहीं मिले तभी मुझे योगिंन्दर मिला और वो
ही मेरे साथ रहा हमेशा और मेरे लिए रुका भी अगर कोई चीज मुझे बढ़िया लगी मैं वह रुका तो वो भी वही रुका तभी पता चला कौन साथ निभाने वाला है और कौन नहीं जबकि मैने उसको
ज्यादा तव्वजो नहीं दी थी मगर उस दिन अपनी गलती का अहसास हुआ सही कहे तो उसने दोस्ती निभाई और इंसानियत भी माफ़ करना मेरे भाई योगी ( योगिंदर )
उसी के पास एक गुरुद्वारे भी जाना था जलियाँवाला बाग़ देखा वो गोलियों के निशान देखे जो
कुँए के पास जनरल डायर ने अहिंसक प्रदर्शन कर रहे निर्दोष भारतीयों पर दागे
उसके बाद हमारा अगला पड़ाव गुरुद्वारे में था मैं जब गुरुद्वारे में गया अचानक
मैं जिस समूह में था वो गायब हो गया मैं ढूंढता रहा पर कोई नहीं मिला पुनीत और भरत जिनका जाने का बनने के कारण बना था वो ही साथ छोड़ गए और तभी कोई अलग समूह में जो जा रहा था वो मिला
मगर पुनीत और रजत नहीं मिले तभी मुझे योगिंन्दर मिला और वो
ही मेरे साथ रहा हमेशा और मेरे लिए रुका भी अगर कोई चीज मुझे बढ़िया लगी मैं वह रुका तो वो भी वही रुका तभी पता चला कौन साथ निभाने वाला है और कौन नहीं जबकि मैने उसको
ज्यादा तव्वजो नहीं दी थी मगर उस दिन अपनी गलती का अहसास हुआ सही कहे तो उसने दोस्ती निभाई और इंसानियत भी माफ़ करना मेरे भाई योगी ( योगिंदर )
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