बुधवार, 19 मई 2021

रिश्तों के एहसास की डोर आज और कल

समय-समय  की बात  है ।  एक  समय था जब  रिश्तों  मे आत्मीयता  थी , रिश्तों  मे मिठास थी ,  तब सभी  संबंधों  मे आत्मीयता   थी  यहाँ तक   कि काम वाली  बाई  से भी आत्मीयता  का रिश्ता  बन जाता था   जैसे  कि  काम करने  वाली  बाईं  अगर बुजुर्ग हो तो अम्मा का सा रिश्ता बन जाता था ।

एक बार जब हम स्कूल से घर आए तो हमने देखा  कि एक  नई काम वाली  बाईं  आई  हुई  है जोकि  काफ़ी  कमजोर  दिख  रही थी  वह  पोछा  लगा  रही  थी  तभी  हमे  पता लगा  कि माँ  की  रिंग  नहीं  मिल रही हैं  । माँ  बहुत  दुखी  दिखाई  दे रही थी  तब हम भी  माँ  की  रिंग  ढूँढने  मे मदद करने  लगे   तभी  अम्मा  की  नजर  पोछा  लगाते हुए  दरवाजे  के पास पड़ी रिंग  पर गयी   तब अम्मा  ने  वो रिंग  माँ  को दी । माँ  ने   फिर   उनका धन्यवाद  किया।  भगवान  का शुक्रिया  किया ।  उस दिन के बाद से  उनके  लिए इज्जत और बढ गयी  और  उनका माँ   बेटी  का सा रिश्ता  बन गया        उस  समय रिश्तों  की  बहुत  अहमियत  थी  उस  समय  आज जैसे   रिश्ते  नहीं  थे    

       संदेश _    रिश्तों  मे ईमानदारी  आत्मीयता  आवश्यक  है  इसके   बिना  रिश्ते  अधूरे  है चाहे वो  भाई  _ बहन  का रिश्ता  हो माँ  _ बेटे  _ का  पिता  पुत्री  का हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें