शनिवार, 22 मई 2021

एक गरीब ईमानदार मीनू दी की कहानी

 ये कहानी  उस समय  की  है  जब हम  पानीपत  हुडडा  सैक्टर 12 मे  86 मकान  नंबर मे  रहते  थे  घर  मे माँ   ,   पिता  जी   और  उनके  हम तीन  बच्चे  रहते थे।  मै  ऋषभ और मेरी दो बहने  रहती थी  एक दिन  जब मै स्कूल  से घर आया  तो   मैंने  कपड़े  बदले और खाना खाया  मैने देखा  काम  करने  के लिए  एक नई  दी आई हुई थी   जिनका  नाम  मीनू  था    पहले  प्रसंग  मे जो अम्मा  थी  वो ही इनकी सास थी     एक दिन  की बात है   त्योहार  था  तो  काम  से खुश  होकर  बच्चों  के लिए  पैजेब   बालिया  दी थी चश्मे  की डिब्बी   मे और उसमें  टोपस  भी चले गये   काम  करके  वो अपने  घर  जा चुकी थी   जब  घर जाकर  उन्होंने  अपने  बच्चों  के सामने  बैठ  कर खोला  तो उन्होंने  डिब्बी  खोली  और टोपस   मिला  उनके  घर कोई  मेहमान  आए हुए  थे  उनहोंने  कहा  कि इसे रखले  किसी  को  क्या  पता  चलना  है  तू इसे  रखले  पर मीनू दी नहीं  मानी और  तभी  हमारे  घर भागती हुई  आई  हांफती हुई  घर आई  और  मेरी माँ  को शो टोपस दिया  और  हमने  उनका धन्यवाद   किया  और  भगवान  का आभार  प्रकट  किया   उनकी ईज्जत  ओर बढ गयी 

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